सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर बातचीत करने और इस मसले को सुलझाने के लिए चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई है। इनमें अशोक गुलाटी और डॉ. प्रमोद के जोशी एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट हैं, जबकि भूपिंदर सिंह मान और अनिल घनवट किसान नेता हैं। चारों के पास इस सेक्टर का अच्छा-खासा अनुभव है। चारों सदस्यों के पुराने आर्टिकल और इंटरव्यू बताते हैं कि वे कृषि कानूनों के पक्ष में रहे हैं। हम इन चारों के बारे में समझते हैं…
1. अशोक गुलाटी, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट
इन्होंने कहा- ये कानून किसानों को ज्यादा विकल्प और आजादी देंगे

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अशोक गुलाटी को 2015 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था।
अशोक गुलाटी एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट हैं। अभी वे इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन (ICRIER) में प्रोफेसर हैं। वे नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री की ओर से बनाई एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के मेंबर और कृषि बाजार सुधार पर बने एक्सपर्ट पैनल के अध्यक्ष हैं। वे कृषि कानून को किसानों के लिए फायदेमंद बताते रहे हैं। पिछले साल सितंबर में इंडियन एक्सप्रेस में अपने आर्टिकल में उन्होंने लिखा था– ‘ये कानून किसानों को ज्यादा विकल्प और आजादी देंगे।’ गुलाटी ने कई फसलों का मिनिमम सपोर्ट प्राइज (MSP) बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।
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अशोक गुलाटी ने 28 सितंबर को यह आर्टिकल लिखा था। उनका कहना था कि कृषि कानूनों पर सरकार को अपना काम करना चाहिए, इस पर विपक्ष का भटकाव है।
2. डॉ. प्रमोद के जोशी, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट
इन्होंने कहा- इन कानूनों से किसानों को नुकसान नहीं होगा

डॉ. प्रमोद जोशी नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर भी रह चुके हैं।
डॉ. प्रमोद जोशी भी एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट हैं। अभी वे साउथ एशिया इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं। उन्हें एग्रीकल्चर सेक्टर में काम करने के लिए कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। उन्होंने 2017 में फाइनेंशियल एक्सप्रेस में अपने आर्टिकल में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों के लिए फायदेमंद बताया था। तब कृषि कानून बनाए जा रहे थे। जोशी ने लिखा था- इन कानूनों से फसलों के कीमतों में उतार-चढ़ाव होने पर किसानों को नुकसान नहीं होगा और उनका जोखिम कम होगा।
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जोशी का यह आर्टिकल 7 अप्रैल 2017 को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में छपा था। इसमें लिखा था- वैश्विक अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से फसलों की लागत कम होती है।
3. भूपिंदर सिंह मान, चेयरमैन, अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति
इनकी समिति कृषि कानूनों का समर्थन कर चुकी

भूपिंदर सिंह को राष्ट्रपति ने 1990 में राज्यसभा में नामांकित किया था। मान को कृषि कानूनों पर कुछ आपत्तियां रही हैं।
15 सितंबर 1939 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए सरदार भूपिंदर सिंह मान किसानों के लिए हमेशा काम करते रहे हैं। इस वजह से राष्ट्रपति ने 1990 में उन्हें राज्यसभा में नामांकित किया था। वे अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के चेयरमैन भी हैं। मान को कृषि कानूनों पर कुछ आपत्तियां हैं। उनकी समिति ने 14 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कुछ आपत्तियों के साथ कृषि कानूनों का समर्थन किया था। पत्र में लिखा था, ‘आज भारत की कृषि व्यवस्था को मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में जो तीन कानून पारित किए गए हैं, हम उन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं।’

अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति ने यह पत्र केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को लिखा था।
4. अनिल घनवट, अध्यक्ष, शेतकारी संगठन
इन्होंने कहा था- इन कानूनों से गांवों में निवेश बढ़ेगा

अनिल घनवट शुरू से ही कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानूनों में कुछ सुधार की गुंजाइश है
अनिल घनवट महाराष्ट्र में किसानों के बड़े संगठन शेतकरी संगठन के अध्यक्ष हैं। यह संगठन बड़े किसान नेता रहे शरद जोशी ने 1979 में बनाया था। 1979 में ही प्याज की ज्यादा कीमतें तय करने के लिए किसानों के एक समूह ने पुणे-नासिक हाईवे ब्लॉक कर दिया था। इस समूह का नेतृत्व घनवट ने किया था। 2018 में घनवट ने एक हजार से ज्यादा किसानों का नेतृत्व कर अकोला में एचटी बीटी कॉटन के बीज बोए थे, जबकि इन बीजों पर सरकार ने तब रोक लगा दी थी।
घनवट का कहना है कि इन कानूनों के आने से गांवों में कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस बनाने में निवेश बढ़ेगा। अगर दो राज्यों (पंजाब और हरियाणा) के दबाव में आकर ये कानून वापस ले लिए जाते हैं तो इससे किसानों के लिए खुले बाजार का रास्ता बंद हो जाएगा। उन्होंने दिल्ली में चल रहे किसानों के आंदोलन को राजनीति से प्रेरित और विपक्ष का भड़काया जा रहा आंदोलन बताया है।